Ter Suno Braj Raj Dulare
विनय टेर सुनो ब्रज राज दुलारे दीन-मलीन हीन सुभ गुण सों, आन पर्यो हूँ द्वार तिहारे काम, क्रोध अरु कपट, लोभ, मद, छूटत नहिं प्राण ते पियारे भ्रमत रह्यो इन संग विषय में, ‘सूरदास’ तव चरण बिसारे
Piya Itani Vinati Suno Mori
शरणागति पिया इतनी विनती सुनो मोरी औरन सूँ रस-बतियाँ करत हो, हम से रहे चित चोरी तुम बिन मेरे और न कोई, मैं सरणागत तोरी आवण कह गए अजहूँ न आये, दिवस रहे अब थोरी ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, अरज करूँ कर जोरी
Piya Bin Suno Che Ji Mharo Des
विरह व्यथा पिया बिन सूनो छे जी म्हारो देस ऐसो है कोई पिवकूँ मिलावै, तन मन करूँ सब पेस तुम्हरे कारण बन बन डोलूँ, कर जोगण रो भेस अवधि बीती अजहूँ न आये, पंडर हो गया केस ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, तज दियो नगर नरेस
Vinati Suno Shyam Meri
विरह व्यथा विनती सुनो श्याम मेरी, मैं तो हो गई थारी चेरी दरसन कारण भई बावरी, विरह व्यथा तन घेरी तेरे कारण जोगण हूँगी, करूँ नगर बिच फेरी अंग गले मृगछाला ओढूँ, यो तन भसम करूँगी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, वन-वन बीच फिरूँगी
Dhanya Sakhi Suno Jasoda Maiya
बालकृष्ण चरित धन्य सखी सुनो जसोदा मैया घुँटुरन चलत बालकृष्ण अति कोमल नन्हें पैया मनमोहन को रूप रसीलो, गोपीजन मन भावत बारंबार कमल मुख निरखत, नंदालय सब आवत किलकि किलकि हुलसत है लालन, भगत बछल मनरंजन देत असीस सबहि गोपीजन, चिरजीवो दुख-भंजन