Subhag Sej Sobhit Kosilya
कौशल्या का स्नहे सुभग सेज सोभित कौसिल्या, रुचिर राम-सिसु गोद लिये बार-बार बिधुबदन बिलोकति लोचन चारू चकोर किये कबहुँ पौढ़ि पयपान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये बालकेलि गावति हलरावति, पुलकित प्रेम-पियूष पिये बिधि-महेस, मुनि-सुर सिहात सब, देखत अंबुद ओट दिये ‘तुलसिदास’ ऐसो सुख रघुपति पै, काहू तो पायो न बिये
Sobhit Kar Navneet Liye
बाल कृष्ण माधुर्य सोभित कर नवनीत लिये घुटुरुन चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किये चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिये लत लटकनि मनौ मत्त मधुप गन, माधुरि मधुहि पिये कठुला कंठ वज्र के हरि नख, राजत रुचिर हिये धन्य ‘सूर’ एकेउ पल यहि सुख, का सत् कल्प जियें