Murali Adhar Saji Balbir
मोहिनी मुरली मुरली अधर सजी बलबीर नाद सुनि वनिता विमोहीं, बिसरे उर के चीर धेनु मृग तृन तजि रहे, बछरा न पीबत छीर नैन मूँदें खग रहे ज्यौं, करत तप मुनि धीर डुलत नहिं द्रुम पत्र बेली, थकित मंद समीर ‘सूर’ मुरली शब्द सुनि थकि, रहत जमुना नीर