Prat Kal Uthi Makhan Roti
बालकृष्ण की बान प्रातकाल उठि माखन रोटी, को बिनु माँगे दैहै अब उहि मेरे कुँवर कान्ह को, छिन-छिन गोदी लैहै कहियौ पथिक जाइ, घर आवहु, राम कृष्ण दोउ भैया दोउ बालक कत होत दुखारी, जिनके मो सी मैया ‘सूर’ पथिक सुनि, मोहि रैन-दिन, बढ्यो रहत उर सोच मेरो अलक-लड़ैतो मोहन, करत बहुत संकोच