Re Man Govind Ke Hve Rahiye
प्रबोधन रे मन, गोविंद के ह्वै रहियै विरत होय संसार में रहिये, जम की त्रास न सहियै सुख, दुख कीरति भाग्य आपने, मिल जाये सो गहियै ‘सूरदास’ भगवंत-भजन करि, भवसागर तरि जइयै
Gunghat Ka Pat Khol Re Toko Peev Milenge
अज्ञान निवृत्ति घूँघट का पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे घट घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे धन जोबन को गरब न कीजे, झूठा पचरंग चोल रे सुन्न महल में दीप जलाले, आसन सों मत डोल रे जाग जुगुत सो रंग-महल में, पिय पायो अनमोल रे कहे ‘कबीर’ अनन्द भयो है, […]
Re Man Ram So Kar Preet
श्री राम भजो रे मन राम सों कर प्रीत श्रवण गोविंद गुण सुनो, अरु गा तू रसना गीत साधु-संगत, हरि स्मरण से होय पतित पुनीत काल-सर्प सिर पे मँडराये, मुख पसारे भीत आजकल में तोहि ग्रसिहै, समझ राखौ चीत कहे ‘नानक’ राम भजले, जात अवसर बीत
Re Man Murakh Janam Gawayo
असार संसार रे मन मूरख जनम गँवायो करि अभिमान विषय रस राच्यो, श्याम सरन नहिं आयो यह संसार सुवा सेमर ज्यों, सुन्दर देखि भुलायो चाखन लाग्यो रूई गई उड़ि, हाथ कछु नहीं आयो कहा भयो अबके मन सोचे, पहिले पाप कमायो कहत ‘सूर’ भगवंत भजन बिनु, सिर धुनि धुनि पछितायो
Jivan Ke Din Char Re Man Karo Punya Ke Kam
नाशवान संसार जीवन के दिन चार रे, मन करो पुण्य के काम पानी का सा बुदबुदा, जो धरा आदमी नाम कौल किया था, भजन करूँगा, आन बसाया धाम हाथी छूटा ठाम से रे, लश्कर करी पुकार दसों द्वार तो बन्द है, निकल गया असवार जैसा पानी ओस का, वैसा बस संसार झिलमिल झिलमिल हो रहा, […]
Banar Jabaro Re
लंका दहन (राजस्थानी) बानर जबरो रे, लंका नगरी में मच गयो हाँको रे मात सीताजी आज्ञा दीनी, फल खा तूँ पाको रे कूद पड्यो इतने में तो हनुमत मार फदाको रे रूख उठाय पटक धरती पर, भोग लगाय फलाँ को रे राक्षसियाँ अरडावे सारी, काल आ गयो म्हाको रे उजड़ गई अशोक वाटिका, बिगड़ग्यो सारो […]
Koi Kahiyo Re Prabhu Aawan Ki
विरह व्यथा कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मन भावन की आप न आवै, लिख नहिं भेजै, बान पड़ी ललचावन की ए दोऊ नैन कह्यो नहिं माने, नदियाँ बहे जैसे सावन की कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो, पाँख नहीं उड़ जावन की ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भई तेरे दामन […]
Pani Main Min Piyasi Re
आत्म ज्ञान पानी में मीन पियासी रे, मोहे सुन-सुन आवे हाँसी रे जल थल सागर पूर रहा है, भटकत फिरे उदासी रे आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोऊ मथुरा, कोई कासी रे गंगा और गोदावरी न्हाये, ज्ञान बिना सब नासी रे कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, सहज मिले अविनासी रे
Chalo Re Man Jamna Ji Ke Tir
यमुना का तीर चलो रे मन जमनाजी के तीर जमनाजी को निरमल पाणी, सीतल होत शरीर बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लिये बलबीर मोर मुकुट पीताम्बर सोहे, कुण्डल झलकत हीर मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कँवल पर सीर
Bhajo Re Bhaiya Ram Govind Hari
हरि कीर्तन भजो रे भैया राम गोविन्द हरी जप तप साधन कछु नहिं लागत, खरचत नहिं गठरी संतति संपति सुख के कारण, जासे भूल परी कहत ‘कबीर’ राम नहिं जा मुख, ता मुख धुल भरी