Mukhada Ni Maya Lagi Re
मोहन का सौंदर्य (गुजराती) मुखड़ानी माया लागी रे, मोहन प्यारा मुखड़ूँ मैं जोयुँ तारूँ, सब जग थयुँ खारूँ, मन मारूँ रह्युँ न्यारूँ रे संसारी, नुँ सुख एवुँ, झाँझवाना नीर जेवुँ, तेने तुच्छ करी फरिये रे ‘मीराँबाई’ बलिहारी, आशा मने एक तारी, हवे हुँ तो बड़भागी रे
Tu Apne Ko Pahchan Re
जीवात्मा तूँ अपने को पहचान रे ईश्वर अंश जीव अविनाशी, तूँ चेतन को जान रे घट घट में चेतन का वासा, उसका तुझे न भान रे परम् ब्रह्म का यह स्वरूप है, जो यथार्थ में ज्ञान रे रक्त मांस से बनी देह यह, जल जाती श्मशान रे वे विश्व वद्य वे जग-निवास, कर मन में […]
Mero Man Ram Hi Ram Rate Re
नाम की महिमा मेरो मन रामहि राम रटै रे राम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटे रे जनम जनम के लेख पुराने, नामहि लेत फटे रे कनक कटोरे अमृत भरियो, पीवत कौन नटे रे ‘मीराँ’ कहे प्रभु हरि अविनासी, तन-मन ताहि पटे रे
Bhajahun Re Man Shri Nand Nandan
नवधा भक्ति भजहुँ रे मन श्री नँद-नन्दन, अभय चरण अरविन्द रे दुर्लभ मानव-जनम सत्संग, तरना है भव-सिंधु रे शीत, ग्रीष्म, पावस ऋतु, सुख-दुख, ये दिन आवत जात रे कृपण जीवन भजन के बिन चपल सुख की आस रे ये धन, यौवन, पुत्र, परिजन, इनसे मोह परितोष रे कमल-नयन भज, जीवन कलिमल, करहुँ हरि से प्रीति […]
Kou Mai Leho Re Gopal
मुग्ध गोपी कोउ माई लेहो रे गोपाल दधि को नाम श्याम घन सुंदर, बिसर्यो चित ब्रजबाल मटकी सीस भ्रमत ब्रज बीथिन, बोलत बचन रसाल उफनत तक चूवत चहुँ दिसि तें, मन अटक्यो नँदलाल हँसि मुसिकाइ ओट ठाड़ी ह्वै, चलत अटपटी चाल ‘सूर’ श्याम बिन और न भावे, यह बिरहिनी बेहाल
Ab Odhawat Hai Chadariya Vah Dekho Re Chalti Biriya
अंतिम अवस्था अब ओढ़ावत है चादरिया, वह देखो रे चलती बिरिया तन से प्राण जो निकसन लागे, उलटी नयन पुतरिया भीतर से जब बाहर लाये, छूटे महल अटरिया चार जने मिल खाट उठाये, रोवत चले डगरिया कहे ’कबीर’ सुनो भाई साधो, सँग में तनिक लकड़िया
Bhajo Re Man Shri Radha Govind
नाम स्मरण भजो रे मन श्री राधा गोविंद जन-मन को निज-धन-मनमोहन, पूरन परमानंद जीवन के जीवन वे तेरे, तू चकोर वे चन्द कैसे तिनहिं बिसारि भयो तूँ, मोह मुग्ध मतिमन्द चेत-चेत रे अब तो मूरख, छोड़ सबहिं छल-छन्द सब तज भज मोहन को प्यारे, यहीं पंथ निर्द्वंद
Re Man Krishna Nam Kah Lije
नाम स्मरण रेमन, कृष्ण-नाम कह लीजै गुरु के वचन अटल करि मानहु, साधु-समागम कीजै पढ़ियै-सुनियै भगति-भागवत, और कथा कहि लीजै कृष्ण-नाम बिनु जनम वृथा है, वृथा जनम कहाँ जीजै कृष्ण-नाम-रस बह्यौ जात है, तृषावन्त ह्वै पीजै ‘सूरदास’ हरि-सरन ताकियै, जनम सफल करि लीजै
Kahe Ko Tan Manjta Re Mati Main Mil Jana Hai
सत्संग महिमा काहे को तन माँजता रे, माटी में मिल जाना है एक दिन दूल्हा साथ बराती, बाजत ढोल निसाना है एक दिन तो स्मशान में सोना, सीधे पग हो जाना है सत्संगत अब से ही करले, नाहिं तो फिर पछताना है कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, प्रभु का ध्यान लगाना है
Manwa Nahi Vichari Re
पछतावा (राजस्थानी) मनवा नहीं विचारी रे थारी म्हारी करता उमर बीति सारी रे बालपणा में लाड़-लड़ायो, माता थारी रे भर जोबन में लगी लुगाई सबसे प्यारी रे बूढ़ो हुयो समझ में आई, ऊमर हारी रे व्यर्थ बिताई करी एक बस, थारी म्हारी रे मिनख जनम खो दियो, तू जप ले कृष्ण मुरारी रे अन्तकाल थारो […]