Jogiya Chaai Rahyo Pardes
विरह व्यथा जोगिया, छाइ रह्यो परदेस जब का बिछड़्या फेर न मिलिया, बहुरि न दियो सँदेस या तन ऊपर भसम रमाऊँ, खार करूँ सिर केस भगवाँ भेष धरूँ तुम कारण, ढूँढत फिर फिर देस ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, जीवन व्यर्थ विशेष
Piya Bin Rahyo Na Jay
विरह व्यथा पिया बिन रह्यो न जाय तन-मन मेरो पिया पर वारूँ, बार-बार बलि जाय निस दिन जोऊँ बाट पिया की, कब रे मिलोगे आय ‘मीराँ’ को प्रभु आस तुम्हारी, लीज्यो कण्ठ लगाय
Shyam Binu Rahyo Na Jay
विरह व्यथा स्याम बिनु रह्यो न जाय खान पानमोहि फीको लागे, नैणा रहे मुरझाय बार बार मैं अरज करूँ छूँ, रैण गई दिन जाय ‘मीराँ’ कहे हरि तुम मिलिया बिन, तरस तरस तन जाय