Braj Ghar Ghar Pragati Yah Bat
माखन चोरी ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात दधि-माखन चोरी करि ले हरि, ग्वाल-सखा सँग खात ब्रज-बनिता यह सुनि मन हर्षित, सदन हमारें आवैं माखन खात अचानक पावैं, भुज हरि उरहिं छुवावै मन ही मन अभिलाष करति सब, ह्रदय धरति यह ध्यान ‘सूरदास’ प्रभु कौं हम दैहों, उत्तम माखन खान
Pragati Anup Rup Vrashbhanu
श्री राधा प्राकट्य प्रगटी अनूप रूप, वृषभानु की दुलारी राधा शुचि मधुर-मधुर, कीर्तिदा-कुमारी चंद्र-वदन रूप सौम्य, दोऊ कर-कमल मधुर विशद नयन-कमल मधुर, आनँद विस्तारी अरुन चरन-पद्म सदृश, भौंह मधुर भाव मधुर अधरनि मुसकान मधुर, सरवस बलिहारी आए तहँ दरसन हित, शिव, ऋषि व्रतधारी रासेश्वरि श्री राधा के, कान्हा की प्यारी
Pragati Nagari Rup Nidhan
श्री राधा प्राकट्य प्रगटी नागरि रूप-निधान निरख निरख सब कहे परस्पर, नहिं त्रिभुवन में आन कृष्ण-प्रिया का रूप अद्वितीय, विधि शिव करे बखान उपमा कहि कहि कवि सब हारे, कोटि कोटि रति-खान ‘कुंभनदास’ लाल गिरधर की, जोरी सहज समान