Hari Tum Haro Jan Ki Pir
पीड़ा हरलो हरि तुम हरो जन की भीर द्रौपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर भक्त कारन रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर हरिणकस्यप मारि लीन्हौं, धर्यो नाहिं न धीर बूड़तो गजराज राख्यौ, कियो बाहर नीर दासी ‘मीराँ’ लाल गिरिधर, हरो म्हारी पीर
Jugal Chavi Harati Hiye Ki Pir
युगल छवि जुगल छवि हरति हिये की पीर कीर्ति-कुँअरि ब्रजराम-कुँअर बर ठाढ़े जमुना-तीर कल्पवृच्छ की छाँह सुशीतल, मंद-सुगंध समीर मुरली अधर, कमल कर कोमल, पीत-नील-द्युति चीर मुक्ता-मनिमाला, पन्ना गल, सुमन मनोहर हार भूषन विविध रत्न राजत तन, बेंदी-तिलक उदार श्रवननि सुचि कुण्डल झुर झूमक, झलकत ज्योति अपार मुसुकनि मधुर अमिय दृग-चितवनि, बरसत सुधा सिंगार