Main Hari Patit Pawan Sune
पतित-पावन मैं हरि पतित-पावन सुने मैं पतित तुम पतित पावन दोइ बानक बने व्याध, गनिका, गज, अजामिल, साखि निगमनि भने और अधम अनेक तारे, जात कापै गने जानि नाम अजानि लीन्हें, नरक सुरपुर मने दास तुलसी सरन आयो, राखिये आपने
Patit Pawan Virad Tumharo
विनय पतित पावन बिरद तुम्हारो, कौनों नाम धर्यौ मैं तो दीन दुखी अति दुर्बल, द्वारै रटत पर्यौ चारि पदारथ दिये सुदामहि, तंदुल भेंट धर्यौ द्रुपद-सुता की तुम पत राखी, अंबर दान कर्यौ संदीपन को सुत प्रभु दीने, विद्या पाठ कर्यौ ‘सूर’ की बिरियाँ निठुर भये प्रभु, मेरौ कछु न सर्यौ
Patit Pawani Narmade
नर्मदा वंदन पतित पावनि नर्मदे, भव-सिन्धु से माँ तार दे जो यश बखाने आपका, आगम, निगम, सुर, शारदे फोड़कर पाताल, तुम बह्ती धुआँ की धार दे है नाव मेरी भँवर में, अब पुण्य की पतवार दे बज रहे नूपुर छमाछम, ज्यों बँधे हो पाँव में मंद कल-कल गुँजता, स्वर पंथ के हर गाँव में सतपुड़ा […]