Gunghat Ka Pat Khol Re Toko Peev Milenge
अज्ञान निवृत्ति घूँघट का पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे घट घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे धन जोबन को गरब न कीजे, झूठा पचरंग चोल रे सुन्न महल में दीप जलाले, आसन सों मत डोल रे जाग जुगुत सो रंग-महल में, पिय पायो अनमोल रे कहे ‘कबीर’ अनन्द भयो है, […]
Kachu Pat Pahinati Rahi
बंसी का जादू कछु पट पहिनति रही, कछुक आभूषण धारति कछु दर्पन महँ देखि माँग, सिन्दूर सम्हारति जो जो कारज करति रही, त्यागो सो तिनने चलीं बेनु सुनि काज अधुरे छोड़े उनने बरजी पति पितु बन्धु ने, रोकी बहुत पर नहीं रुकी कही बहुत पर ते नहीं, लोक लाज सम्मुख झुकी