Hari Aawat Gaini Ke Pache
गो – चारण हरि आवत गाइनि के पाछे मोर-मुकुट मकराकृति कुंडल, नैन बिसाल कमल तैं आछे मुरली अधर धरन सीखत हैं, वनमाला पीताम्बर काछे ग्वाल-बाल सब बरन-बरन के, कोटि मदन की छबि किए पाछे पहुँचे आइ स्याम ब्रजपुर में, धरहिं चले मोहन-बल आछे ‘सूरदास’ प्रभु दोउ जननि मिलिं, लेति बलाइ बोलि मुख बाँछे