Sanwara Mhari Prit Nibhajyo Ji
शरणागति साँवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी थें छो सगला गुण रा सागर, म्हारा औगुण थे बिसराज्यो जी लोक न धीजै, मन न पतीजै, मुखड़े शब्द सुणाज्यो जी दासी थारी जनम-जनम री, म्हारै आँगण आज्यो जी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी