Bansiwala Aajo Mhare Des
विरह व्यथा बंसीवाला आजो म्हारे देस, थाँरी साँवरी सूरति वालो भेष आऊगा कह गया साँवरा, कर गया कौल अनेक गणता गणता घिस गई म्हारी, आँगुलिया की रेख तेरे कारण साँवराजी, धर लियो जोगण भेष ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, आओ मिटे कलेस
Mhare Ghar Aao Pritam Pyara
आओ प्रीतम म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा, जग तुम बिन लागे खारा तन-मन धन सब भेंट धरूँगी, भजन करूँगी तुम्हारा तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये, मोमें औगुण सारा मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूँ, ये सब बगसण हारा ‘मीराँ’ कहे प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन नैण दुखारा
Mhare Janam Maran Ra Sathi
म्हारा साथी म्हारे जनम-मरण रा साथी, थाँने नहिं बिसरूँ दिन राती थाँ देख्याँ बिन कल न पड़त है, जाणत मोरी छाती ऊँची चढ़-चढ़ पंथ निहारूँ, रोय-रोय अँखिया राती यो संसार सकल जग झूँठो, झूँठा कुल रा न्याती दोउ कर जोड्याँ अरज करूँ छू, सुणल्यो म्हारी बाती यो मन मेरो बड़ो हरामी, ज्यूँ मदमातो हाथी सत्गुरू […]