Mo Sam Kon Kutil Khal Kami
शरणागति मो सम कौन कुटिल खल कामी जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी हरिजन छाँड़ि हरी-विमुखन की, निसिदिन करत गुलामी पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी ‘सूर’ पतित को ठौर कहाँ है, सुनिए श्रीपति स्वामी
Dhuri Dhusrit Nil Kutil Kach Kare Kare
अन्तर्धान लीला धुरि धूसरित नील कुटिल कच, कारे कारे मुखपै बिथुरे मधुर लगें, मनकूँ अति प्यारे झोटा खात बुलाक, मोर को मुकुट मनोहर ऐसो वेष बनाइ जाउ जब, बन तुम गिरिधर तब पल-पल युग-युग सरिस, बीतत बिनु देखे तुम्हें अब निशिमहँ बन छाँड़ि तुम, छिपे छबीले छलि हमें