Kahu Ke Kul Hari Nahi Vicharat
भक्त के प्रति काहू के कुल हरि नाहिं विचारत अविगत की गति कही न परति है, व्याध अजामिल तारत कौन जाति अरु पाँति विदुर की, ताही के हरि आवत भोजन करत माँगि घर उनके, राज मान मद टारत ऐसे जनम करम के ओछे, ओछनि ते व्यौहारत यह स्वभाव ‘सूर’ के हरि कौ, भगत-बछल मन पारत
Duniya Main Kul Saat Dwip
भारतवर्ष दुनियाँ में कुल सात द्वीप, उसमें जम्बू है द्वीप बड़ा यह भारतवर्ष उसी में है, संस्कृति में सबसे बढ़ा चढ़ा कहलाता था आर्यावर्त, प्राचीन काल में देश यही सम्राट भरत थे कीर्तिमान, कहलाया भारतवर्ष वही नाभिनन्दन थे ऋषभदेव, जिनमें यश, तेज, पराक्रम था वासना विरक्त थे, परमहंस, स्वभाव पूर्णतः सात्विक था सम्राट भरत इनके […]