Gwalin Kar Te Kor Chudawat
बालकृष्ण लीला ग्वालिन कर ते कौर छुड़ावत झूठो लेत सबनि के मुख कौ, अपने मुख लै नावत षट-रस के पकवान धरे बहु, तामें रूचि नहिं पावत हा हा करि करि माँग लेत हैं, कहत मोहि अति भावत यह महिमा वे ही जन जानैं, जाते आप बँधावत ‘सूर’ श्याम सपने नहिं दरसत, मुनिजन ध्यान लगावत
Sakhi Mharo Kanho Kaleje Ki Kor
प्राणनाथ कन्हैया सखी म्हारो कान्हो कलेजे की कोर मोर मुकुट पीतांबर सोहे, कुण्डल की झकझोर वृंदावन की कुञ्ज-गलिन में, नाचत नंदकिशोर ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कँवल चितचोर