Koi Kahiyo Re Prabhu Aawan Ki
विरह व्यथा कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मन भावन की आप न आवै, लिख नहिं भेजै, बान पड़ी ललचावन की ए दोऊ नैन कह्यो नहिं माने, नदियाँ बहे जैसे सावन की कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो, पाँख नहीं उड़ जावन की ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भई तेरे दामन […]
Tera Koi Nahi Rokanhar
मग्न मीरा तेरा कोइ नहिं रोकनहार, मगन होय मीराँ चली लाज सरम कुल की मरजादा, सिर से दूर करी मानापमान दोऊ घर पटके, निकसी हूँ ज्ञान गली ऊँची अटरिया लाल किवड़िया, निरगुण सेज बिछी पचरंगी झालर सुभ सोहे, फूलन फूल कली बाजूबंद कठूला सोहे, माँग सिंदुर भरी पूजन थाल हाथ में लीन्हा, सोभा अधिक भली […]
Deh Dhara Koi Subhi Na Dekha
दुःखी दुनिया देह धरा कोई सुखी न देखा, जो देखा सो दुखिया रे घाट घाट पे सब जग दुखिया, क्या गेही वैरागी रे साँच कहूँ तो कोई न माने, झूट कह्यो नहिं जाई रे आसा तृष्णा सब घट व्यापे, कोई न इनसे सूना रे कहत ‘कबीर’ सभी जग दुखिया, साधु सुखी मन जीता रे
Main Kase Kahun Koi Mane Nahi
पाप कर्म मैं कासे कहूँ कोई माने नहीं बिन हरि नाम जनम है विरथा, शास्त्र पुराण कही पशु को मार यज्ञ में होमे, निज स्वारथ सब ही इक दिन आय अचानक तुमसे, ले बदला ये ही पाप कर्म कर सुख को चाहे, ये कैसे निबहीं कहे ‘कबीर’ कहूँ मैं जो कछु, मानो ठीक वही
Koi Manushya Hai Nich Nahi
भरत-केवट मिलाप कोई मनुष्य है नीच नहीं, भगवान भक्त हो, बड़ा वही श्री भरत मिले केवट से तो, दोनों को ही आनन्द हुआ मालूम हुआ केवट से ही, राघव का उससे प्रेम हुआ तब भरत राम के जैसे ही, छाती से उसको लगा रहे केवट को इतना हर्ष हुआ, आँखों से उसके अश्रु बहे जाति […]
Prarabhda Mita Nahi Koi Sake
अमिट प्रारब्ध प्रारब्ध मिटा कोई न सके अपमान अयश या जीत हार, भाग्यानुसार निश्चित आते व्यापारिक घाटा, रोग मृत्यु, इनको हम रोक नहीं पाते विपरीत परिस्थिति आने पर, सत्संग, भजन हो शांति रहे चित में विक्षेप नहीं आये, दृढ़ता व धैर्य से विपद् सहे सुख-दुख तो आते जाते हैं, उनके प्रति समता हो मन में […]