Fagun Ke Din Char Re Hori Khel Mana Re
आध्यात्मिक होली फागुन के दिन चार रे, होरी खेल मना रे बिन करताल पखावज बाजै, अणहद की झणकार रे बिन सुर राग छतीसूँ गावै, रोम-रोम रणकार रे सील संतोष की केसर घोली, प्रेम प्रीति पिचकार रे उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे घट के सब पट खोल दिये हैं, लोक लाज सब […]