Khambha Fadke Pragate Narhari
नरसिंह रूप खम्भ फाड़के प्रगटे नरहरि, अपनों भक्त उबार्यो दैत्यराज हिरणाकशिपु को, नखते उदर विदार्यो नरसिंहरूप धर्यो श्रीहरि ने, धरणी भार उतार्यो जय-जयकार भयो पृथ्वी पे, सुर नर सबहिं निहार्यो कमला निकट न आवे, ऐसो रूप कबहुँ नहीं धार्यो चूमत अरु चाटत प्रह्लाद को, तुरत ही क्रोध निवार्यो राजतिलक दे दियो प्रभु ने, हस्त कमल […]