Kaha Karun Vaikuntha Hi Jaaye

ब्रज महिमा कहा कँरू वैकुण्ठ ही जाये जहाँ नहिं नंद जहाँ न जसोदा, जहाँ न गोपी ग्वाल न गायें जहाँ न जल जमुना को निर्मल, जहँ नहिं मिले कदंब की छायें जहाँ न वृन्दावन में मुरली वादन सबका चित्त चुराये ‘परमानंद’ प्रभु चतुर ग्वालिनि, व्रज तज मेरी जाय बलाये 

Main Bhajan Karun Durga Maa Ka

दुर्गादेवी स्तवन मैं भजन करूँ दुर्गा माँ का दुर्गुण मेरे सब नष्ट करो, आश्रय केवल ही माता का सद्बुद्धि प्रदान तू ही करती, सेवक के सारे कष्ट हरे विघ्नों को माता हर लेती, माँ कठिन कार्य को सुगम करे जब हानि धर्म की होती हैं, दैत्यों का नाश तुम्हीं करती ओ स्नेहमयी मेरी माता, भक्तों […]

Samarpan Karun Buddhi Bal Mera

भीष्मजी द्वारा स्तवन समर्पण करूँ बुद्धि बल मेरा और न कुछ भी दे पाऊँ प्रभु, जो भी है वह तेरा मेरा मन आबद्ध जगत् में, घट घट के प्रभु वासी दो प्रबोध हे त्रिभुवन-सुन्दर! वृन्दावन के वासी पंकज-नयन, तमाल-वर्ण, आवृत अलकावली मुख पे पीत वसन रवि-किरणों के सम, शोभित श्यामल तन पे अनुपम शोभा कुरुक्षेत्र […]