Thane Kai Kai Samjhawan
विरह व्यथा थाने काँईं काँईं समझाँवा, म्हारा साँवरा गिरधारी पुरब जनम की प्रीत हमारी, अब नहीं जाय बिसारी रोम रोम में अँखियाँ अटकी, नख सिख की बलिहारी सुंदर बदन निरखियो जब ते, पलक न लागे म्हाँरी अब तो बेग पधारो मोहन, लग्यो उमावो भारी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुधि लो तुरत ही म्हारी
Rana Ji Ruthe To Mharo Kai Karsi
गोविंद का गान राणाजी रूठे तो म्हारो काई करसी, मैं तो गोविन्द का गुण गास्याँ राणाजी भले ही वाँको देश रखासी, मैं तो हरि रूठ्याँ कठे जास्याँ लोक लाज की काँण न राखाँ मैं तो हरि-कीर्तन करास्याँ हरि-मंदिर में निरत करस्याँ, मैं तो घुँघरिया घमकास्याँ चरणामृत को नेम हमारो, मैं तो नित उठ दरसण जास्याँ […]