Ya Braj Me Kachu Dekho Ri Tona
मुग्धा या वृज में कछु देखोरी टोना ले मटुकी गिर चली गुजरिया, आय मिले बाबा नंद को छोना दधि की पांग बिसरि गई प्यारी, लीजो रीं कोई श्याम सलौना बृन्दावन की कुंज गलिन में, आँख लगायो री मन-मोहना ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुन्दर श्याम सुघर रस लोना
Kachu Pat Pahinati Rahi
बंसी का जादू कछु पट पहिनति रही, कछुक आभूषण धारति कछु दर्पन महँ देखि माँग, सिन्दूर सम्हारति जो जो कारज करति रही, त्यागो सो तिनने चलीं बेनु सुनि काज अधुरे छोड़े उनने बरजी पति पितु बन्धु ने, रोकी बहुत पर नहीं रुकी कही बहुत पर ते नहीं, लोक लाज सम्मुख झुकी