Tumhare Kaaran Sab Sukh Chodya
विरह व्यथा तुम्हरे कारण सब सुख छोड्यो, अब मोहि क्यूँ तरसावो बिरह व्यथा लागी उर अंदर, सो तुम आय बुझावो अब छोड्याँ नहिं बनै प्रभूजी, हँस कर तुरत बुलाओ ‘मीराँ’ दासी जनम जनम की, अंग सूँ अंग लगाओ
विरह व्यथा तुम्हरे कारण सब सुख छोड्यो, अब मोहि क्यूँ तरसावो बिरह व्यथा लागी उर अंदर, सो तुम आय बुझावो अब छोड्याँ नहिं बनै प्रभूजी, हँस कर तुरत बुलाओ ‘मीराँ’ दासी जनम जनम की, अंग सूँ अंग लगाओ