Khijat Jat Makhan Khat
बाल-माधुर्य खीजत जात माखन खात अरुण लोचन भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, छुटि धूसर गात कबहुँ झुकि के अलक खैंचत, नैन जल भरि जात कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात ‘सूर’ हरि की निरखि सोभा, पलक तजत न जात
Tiharo Krishna Kahat Ka Jat
चेतावनी तिहारौ कृष्ण कहत का जात बिछुड़ैं मिलै कबहुँ नहिं कोई, ज्यों तरुवर के पात पित्त वात कफ कण्ठ विरोधे, रसना टूटै बात प्रान लिये जैम जात मूढ़-मति! देखत जननी तात जम के फंद परै नहि जब लगि, क्यों न चरन लपटात कहत ‘सूर’ विरथा यह देही, ऐतौ क्यों इतरात
Mohi Taj Kahan Jat Ho Pyare
हृदयेश्वर श्याम मोहि तज कहाँ जात हो प्यारे हृदय-कुंज में आय के बैठो, जल तरंगवत होत न न्यारे तुम हो प्राण जीवन धन मेरे, तन-मन-धन सब तुम पर वारे छिपे कहाँ हो जा मनमोहन, श्रवण, नयन, मन संग तुम्हारे ‘सूर’ स्याम अब मिलेही बनेगी, तुम सरबस हो कान्ह हमारे
Lal Teri Fir Fir Jat Sagai
माखन चोरी लाल तेरी फिर फिर जात सगाई चोरी की लत त्याग दे मोहन, लड़ लड़ जाय लुगाई दूध दही घर में बहुतेरो, माखन और मलाई बार बार समुझाय जसोदा, माने न कुँवर कन्हाई नंदराय नन्दरानी परस्पर, मन में अति सुख पाई सूर श्याम के रूप, शील गुण, कोउ से कहा न जाई