Rana Ji Ab Na Rahungi Tori Hatki
वैराग्य राणाजी! अब न रहूँगी तोरी हटकी साधु-संग मोहि प्यारा लागै, लाज गई घूँघट की पीहर मेड़ता छोड्यो अपनो, सुरत निरत दोउ चटकी सतगुरु मुकर दिखाया घट का, नाचुँगी दे दे चुटकी महल किला कुछ मोहि न चहिये, सारी रेसम-पट की भई दिवानी ‘मीराँ’ डोलै, केस-लटा सब छिटकी