Dar Lage Aur Hansi Aave
कलियुग की रीति डर लागे और हाँसी आवे, गजब जमाना आया रे धन दौलत से भरा खजाना, वैश्या नाच नचाया रे मुट्ठी अन्न जो साधू माँगे, देने में सकुचाया रे कथा होय तहँ श्रोता जावे, वक्ता मूढ़ पचाया रे भाँग, तमाखू, सुलफा, गाँजा, खूब शराब उड़ाया रे उलटी चलन चले दुनियाँ में, ताते जी घबराया […]