Ghadi Ek Nahi Aavade
विरह व्यथा घड़ी एक नहीं आवड़े, तुम दरशन बिन मोय तुम हो मेरे प्राणजी, किस विधि जीना होय दिवस तो हाय बिता दियो रे, रैन जँवाई सोय जो मैं ऐसो जाणती रे, प्रीति किया दुख होय नगर ढिंढोरो पीटती रे, प्रीति न करियो कोय पंथ निहारूँ डगर बुहारूँ, ऊभी मारग जोय ‘मीराँ’ को प्रभु कब […]