Gopiyan Dhundh Rahi Mohan Ko
अनुराग गोपियाँ ढूँढ रही मोहन को हम भटक रही है वन में, प्रिय दर्शन दे दो हमको वह प्रेम भरा आलिंगन, मनमोहक प्यारी चितवन तो लगीं गर्व हम करने, त्रुटि हमसे हुई बिहारी हे पीपल, आम, चमेली! चितचोर कहाँ क्या देखा! तुम हमको मार्ग बता दो,हम दुःखी हैं ब्रजनारी तब चरणचिन्ह गोविन्द के, वें देख […]