Gwalin Tab Dekhe Nand Nandan
गोपियों का प्रेम ग्वालिन तब देखे नँद-नंदन मोर मुकुट पीताम्बर काचे, खौरि किये तनु चन्दन तब यह कह्यो कहाँ अब जैहौं, आगे कुँवर कन्हाई यह सुनि मन आनन्द बढ़ायो, मुख कहैं बात डराई कोउ कोउ कहति चलौ री जाई, कोउ कहै फिरि घर जाई कोउ कहति कहा करिहै हरि, इनकौ कहा पराई कोउ कोउ कहति […]
Gwalin Jo Dekhe Ghar Aay
माखन चोरी ग्वालिन जो देखे घर आय माखन खाय चुराय श्याम तब, आपुन रही छिपाय भीतर गई तहाँ हरि पाये, बोले अपने घर मैं आयो भूल भई, गोरस में चींटी, काढ़न में भरमायो सुन-सुन वचन चतुर मोहन के, ग्वालिनि मुड़ मुसकानी ‘सूरदास’ प्रभु नटनागर की, सबै बात हम जानी
Jamuna Tat Dekhe Nand Nandan
गोपी का प्रेम जमुना तट देखे नंद-नन्दन मोर-मुकुट मकराकृति कुण्डल, पीत वसन, तन चन्दन लोचन तृप्त भए दरसन ते, उर की तपन बुझानी प्रेम मगन तब भई ग्वालिनी, सब तन दसा हिरानी कमल-नैन तट पे रहे ठाड़े, सकुचि मिली ब्रज-नारी ‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, व्रत पूरन वपु धारी
Dekhe Sab Hari Bhog Lagat
अन्नकूट देखे सब हरि भोग लगात सहस्र भुजा धर उत जेमत है, इन गोपन सों करत है बात ललिता कहत देख हो राधा, जो तेरे मन बात समात धन्य सबहिं गोकुल के वासी, संग रहत गोकुल के नाथ जेमत देख नंद सुख दीनों, अति प्रसन्न गोकुल नर-नारी ‘सूरदास’ स्वामी सुख-सागर, गुण-आगर नागर दे तारी
Dekhe Ham Hari Nangam Nanga
श्याम स्वरुप देखे हम हरि नंगम्नंगा आभूषण नहिं अंग बिराजत, बसन नहीं, छबि उठत तरंगा अंग अंग प्रति रूप माधुरी, निरखत लज्जित कोटि अनंगा किलकत दसन दधि मुख लेपन, ‘सूर’ हँसत ब्रज जुवतिन संगा
Hari Dekhe Binu Kal Na Pare
विरह व्यथा हरि देखे बिनु कल न परै जा दिन तैं वे दृष्टि परे हैं, क्यों हूँ चित उन तै न टरै नव कुमार मनमोहन ललना, प्रान जिवन-धन क्यौं बिसरै सूर गोपाल सनेह न छाँड़ै, देह ध्यान सखि कौन करै
Mukhada Kya Dekhe Darpan Main
दया-धर्म मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, तेरे दया धरम नहीं मन में कागज की एक नाव बनाई, छोड़ी गंगा-जल में धर्मी कर्मी पार उतर गये, पापी डूबे जल में आम की डारी कोयल राजी, मछली राजी जल में साधु रहे जंगल में राजी, गृहस्थ राजी धन में ऐंठी धोती पाग लपेटी, तेल चुआ जुलफन में […]