Kahi Main Aise Hi Mari Jeho
वियोग व्यथा कहीं मैं ऐसै ही मरि जैहौं इहि आँगन गोपाल लाल को कबहुँ कि कनियाँ लैहौं कब वह मुख पुनि मैं देखौंगी, कब वैसो सुख पैंहौं कब मोपै माखन माँगेगो, कब रोटी धरि दैंहौं मिलन आस तन प्राण रहत है, दिन डस मारग चैहौं जौ न ‘सूर’ कान्ह आइ हैं तो, जाइ जमुन धँसि […]
Kahe Aise Bhaye Kathor
निहोरा काहे ऐसे भये कठोर टेरत टेरत भई वयस अब, तक्यो न मेरी ओर कहा करों, कोउ पंथ न दीखत, साधन भी नहिं और पै तुम बिनु मेरे मनमोहन, दीखत और न ठौर काहे अब स्वभाव निज भूले, करहुँ न करुना कोर हूँ मैं दीन भिखारी प्यारे, तुम उदार-सिरमौर