Sakhi Ri Achraj Ki Yah Baat
अचरज की बात सखी री! अचरज की यह बात निर्गुण ब्रह्म सगुन ह्वै आयौ, बृजमें ताहि नचात पूरन-ब्रह्म अखिल भुवनेश्वर, गति जाकी अज्ञात ते बृज गोप-ग्वाल सँग खेलत, बन-बन धेनु चरात जाकूँ बेद नेति कहि गावैं, भेद न जान्यौ जात सो बृज गोप-बधुन्ह गृह नित ही, चोरी कर दधि खात शिव-ब्रह्मादि, देव, मुनि, नारद, जाकौ […]