Man Tu Kahe Bhayo Achet
प्रबोधन मन! तू काहे भयो अचेत भटकत रह्यो व्यर्थ में अब तक, कियो न हरि से हेत पायो मानुष-जन्म हाय! तू ताहि वृथा कर देत अरे भूलि हीरा कों बौरे, करत काँच सो हेत प्राननाथ सों प्रीति न करि तू, पूजत पामर प्रेत सुमिर सुमिर रे! सदा स्याम को, संतत स्नेह समेत