केवट का प्रेम (राजस्थानी)
उतराई ले लो केवटजी, थाँरी नाव की
चरण पकड़ यूँ केवट बोल्यो, सुणो राम रघुराई
थाँरी म्हारी जात न न्यारी, ल्यूँ कइयाँ उतराई
धोबी सूँ धोबी ना लेवे, कपड़ो लेत धुलाई
नाई सूँ नाई ना लेवे, बालाँ की कतराई
थे केवट हो भवसागर का, म्हारे नदी तलाई
जब मैं आऊँ घाट आपरे, दीज्यों पार लगाई
राम लखन सीता के मन में, केवट प्रीति समाई
वर दीन्हो भगती को प्रभुजी, आगे लई विदाई