धनुष भंग
राम कामरिपु चाप चढ़ायो
मुनिहि पुलक, आनंद नगर, नभ सुरनि निसान बजायो
जेहि पिनाक बिनु नाक किये, नृप सबहि विषाद बढ़ायो
सोई प्रभु कर परसत टूटयो, मनु शिवशंभु पढ़ायो
पहिराई जय माल जानकी, जुबतिन्ह मंगल गायो
‘तुलसी’ सुमन बरसि सुर हरषे, सुजसु तिहूँ पुर छायो