संत-स्वभाव
कबहुँक हौं या रहनि रहौंगो
श्री रघुनाथ कृपालु-कृपातें, संत स्वभाव गहौंगो
जथा लाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो
परहित निरत निरंतर मन क्रम वचन नेम निबहौंगो
परिहरि देह जनित चिंता, दुख-सुख समबुद्धि सहौंगो
‘तुलसिदास’ प्रभुयहि पथ अविचल, रहि हरि-भगति लहौंगो