संसार चक्र
कबहूँ मन विश्राम न मान्यो
निसिदिन भ्रमत बिसारि सहन सुख जहँ तहँ इंद्रिन तान्यो
जदपि विषय सँग सह्यो दुसह दुख, विषम जान उरझान्यो
तदपि न तजत मूढ़, ममता बस, जानतहूँ नहिं जान्यो
जन्म अनेक किये नाना विधि, कर्म कीच चित सान्यो
‘तुलसिदास’ ‘कब तृषा जाय सर खनतहिं’ जनम सिरान्यो