रामाश्रय
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे
कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे
खग मृग व्याध, पषान, विटप जड़यवन कवन सुर तारे
देव दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया-विवश बिचारे
तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे
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