सुभाषित
ईश्वर अंस जीव अविनासी, चेतन अमल सहज सुखरासी
उलटा नाम जपत जगजाना, वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना, जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना
जा पर कृपा राम की होई, तापर कृपा करहिं सब कोई
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया, तिनके ह्रदय बसहु रघुराया
जिन हरि –भक्ति ह्रदय नहिं आनी, जीवत शव समान ते आनी
जो मारग श्रुति संत दिखावै, तेहि पथ चलत सबै सुख पावै
जो माया बस भयहुँ गोसाईं, बँधेऊ कीर मरकट की नाईं
दुख सुर अरु अपमान बड़ाई, सब सम लेखहि विपति बिहाई
नहिं असत्य सम पातक पुंजा, गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा
कलियुग जोग जग्य नहिं ज्ञाना, एक आधार राम गुन गाना
परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई
बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न सोई
भाव कुभाव अनख आलसहूँ, नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ
मैं अरु मोर तोर मैं माया, जेहि बस कीन्हे जीव निकाया,
रघुपति भक्ति सुलभ सुखकारी, ते त्रयताप सोक भयहारी
राम एक तापस तिय तारी, नाम कोटि खल कुमति सुधारी,
रामहि केवल प्रेम पियारा, जानि लेहि जो जान निहारा
सत्य मूल सब सुकृत सुहाये, वेद-पुरान विदित अस गाये
सिया राम मय सब जगजानी, करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी
सुमति कुमति सबके उर बसही, नाथ पुरान निगम अस कहई
सुर नर मुनि सबही की रीती, स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती
होइ है वे सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावहिं साखा

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