श्रीराम प्राकट्य
अवतार हुआ श्री राघव का, तो चैत्र-मास की नवमी थी
मौसम सुहावना सुखकारी, तब ऋतु बसंत छवि छाई थी
आनन्द विभोर अयोध्या थी, उन्मुक्त तरंगें सरयू की
हर्षातिरेक से भरी हुई, यह स्थिति मात कौसल्या की
चौथेपन में बेटा पाया, कोसलाधीश को हर्ष हुआ
मन चाहीं भेंट मिली सबको, नाचें गायें दें सभी दुआ
हो गये प्रफुल्लित सुर-गण भी, सब संत, विप्र आनंदित थे
हर्षातिरेक में शिव, ब्रह्मा, ऋषि मुनि सभी रोमांचित थे