अयोध्या में शिव
आज अजोध्या की नगरी में, घूमे जोगी मतवाला
अलख निरंजन खड़ा पुकारे, देखूँगा दशरथ-लाला
शैली सिंगी लिये हाथ में, अरु डमरू त्रिशूल लिये
छमक छमा-छम नाचे जोगी, दरसन की मन चाह लिये
पग के घुँघरू रुनझुन बाजे, शोभा अतिशय मन हारी
बालचन्द्र मस्तक पे राजे, सर्पों की माला धारी
अंग भभूत रमाये जोगी, बाघम्बर कटि में सोहे
जटाजूट में गंग बिराजे, भक्तजनों के मन मोहे
राज-द्वार पै खड़ा पुकारे, बोल रहा मीठी बानी
‘लाला को दिखलादे मैया’, जोगी ने मन में ठानी
मात कौशल्या द्वार पे आई, लाला को निज अंक लिये
अति विभोर हो शिव-जोगी ने, बाल रूप के दरस किये