श्री गणेश प्राकट्य
हे गौरी-पुत्र गणेश गजानन, सभी कामना पूर्ण करें
कलियुग में पूजा अर्चन से, सारे कष्टों को शीघ्र हरे
ब्रह्मा, विष्णु अरु रुद्र आप, अग्नि, वायु, रवि, चन्द्र आप
श्रद्धा पूर्वक जो स्मरण करे, हर लेते सारे पाप ताप
माँ पार्वती के सुत होकर के, प्रत्येक कल्प में जो आते
वे परब्रह्म-भगवान कृष्ण, माता को सुख ये पहुँचाते
मैं प्राप्त करूँ उत्तम बेटा, देवीजी के मन में आया
जब पुत्र रूप उत्पन्न हुए, श्रीकृष्ण वहाँ मंगल छाया
दर्शन पाकर ब्रह्मादिक को, सब देवों को भी हर्ष हुआ
शिशु पर जब शनि की दृष्टि पड़ी, धड़ से मस्तक विलीन हुआ
श्री विष्णु शीघ्र ही जाकर के, गज के मस्तक को ले आये
धड़ पर उसको फिर जोड़ दिया, सब देव वहाँ तब हुलसाये
श्री विष्णु ने तब स्तुति की, सर्वेश्वर, सत्य, सिद्धिदाता
वरणीय श्रेष्ठ सब देवों में, है विघ्न-विनाशक हे त्राता