Sundar Shyam Piya Ki Jori

राधा-कृष्ण माधुरी सुन्दर स्याम पिया की जोरी रोम रोम सुंदरता निरखत, आनँद उमँग बह्योरी वे मधुकर ए कुंज कली, वे चतुर एहू नहिं भोरी प्रीति परस्पर करि दोउ सुख, बात जतन की जोरी वृंदावन वे, सिसु तमाल ए, कनक लता सी गोरी ‘सूर’ किसोर नवल नागर ए, नागरि नवल-किसोरी

Hari Kilkat Jasumati Ki Kaniyan

माँ का स्नेह हरि किलकत जसुमति की कनियाँ मुख में तीनि लोक दिखराए, चकित भई नँद-रनियाँ घर-घर आशीर्वाद दिवावति, बाँधति गरै बँधनियाँ ‘सूर’ स्याम की अद्भुत लीला, नहिं जानत मुनि जनियाँ

Kanha Thari Jowat Rah Gai Baat

विरह व्यथा कान्हा! थारी जोवत रह गई बाट जोवत-जोवत इक पग ठाढ़ी, कालिन्दी के घाट छल की प्रीति करी मनमोहन, या कपटी की बात ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ब्रज को कियो उचाट

Jhumat Radha Sang Giridhar

होली झूमत राधा संग गिरिधर, झूमत राधा संग अबीर, गुलाल की धूम मचाई, उड़त सुगंधित रंग लाल भई वृन्दावन-जमुना, भीज गये सब अंग नाचत लाल और ब्रजनारी, धीमी बजत मृदंग ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, छाई बिरज उमंग

Patiyan Main Kaise Likhu Likhi Hi Na Jay

विरह व्यथा पतियाँ मैं कैसे लिखूँ, लिखि ही न जाई कलम धरत मेरो कर कंपत है, हियड़ो रह्यो घबराई बात कहूँ पर कहत न आवै, नैना रहे झर्राई किस बिधि चरण कमल मैं गहिहौं, सबहि अंग थर्राई ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेगि मिल्यो अब आई

Braj Main Kanha Dhum Machai

होली ब्रज में कान्हा धूम मचाई, ऐसी होरी रमाई इतते आई सुघड़ राधिका, उतते कुँवर कन्हाई हिलमिल के दोऊ फाग रमत है, सब सखियाँ ललचाई, मिलकर सोर मचाई राधेजी सैन दई सखियन के, झुंड-झुंड झट आई रपट झपट कर श्याम सुन्दर कूँ, बैयाँ पकड़ ले जाई, लालजी ने नाच नचाई मुरली पीताम्बर छीन लियो है, […]

Main To Mohan Rup Lubhani

रूप लुभानी मैं तो मोहन रूप लुभानी सुंदर वदन कमल-दल लोचन, चितवन की मुसकानी जमना के नीर तीरे धेनु चरावै, मुरली मधुर सुहानी तन मन धन गिरिधर पर वारूँ, ‘मीराँ’ पग लपटानी

Sakhi Meri Nind Nasani Ho

विरह व्यथा सखी, मेरी नींद नसानी हो पिव को पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो सखियन मिल कर सीख दई मन, एक न मानी हो बिन देख्याँ कल नाहिं पड़त, जिय ऐसी ठानी हो अंग-अंग व्याकुल भये मुख ते, पिय पिय बानी हो अंतर-व्यथा विरह की कोई, पीर न जानी हो चातक जैहि विधि रटे […]

Gunghat Ka Pat Khol Re Toko Peev Milenge

अज्ञान निवृत्ति घूँघट का पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे घट घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे धन जोबन को गरब न कीजे, झूठा पचरंग चोल रे सुन्न महल में दीप जलाले, आसन सों मत डोल रे जाग जुगुत सो रंग-महल में, पिय पायो अनमोल रे कहे ‘कबीर’ अनन्द भयो है, […]

Man Ram Sumar Pachtayega

सत्संग मन राम सुमर पछतायेगा पापी जियरा लोभ करत है, आज काल उठ जायेगा लालच में सब जनम गँवायो, माया भरम लुभायेगा धन जीवन का लोभ न करिये, साथ न कुछ भी जायेगा धरम राज जब लेखा माँगे, क्या मुख उन्हें बतायेगा कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, सत्संग से तर जायेगा