Subhag Sej Sobhit Kosilya
कौशल्या का स्नहे सुभग सेज सोभित कौसिल्या, रुचिर राम-सिसु गोद लिये बार-बार बिधुबदन बिलोकति लोचन चारू चकोर किये कबहुँ पौढ़ि पयपान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये बालकेलि गावति हलरावति, पुलकित प्रेम-पियूष पिये बिधि-महेस, मुनि-सुर सिहात सब, देखत अंबुद ओट दिये ‘तुलसिदास’ ऐसो सुख रघुपति पै, काहू तो पायो न बिये
Udho Karaman Ki Gati Nyari
कर्म की गति ऊधौ करमन की गति न्यारी सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ, सागर केहि विधि खारी उज्जवल पंख दिये बगुला को, कोयल केहि गुन कारी सुन्दर नयन मृगा को दीन्हें, वन वन फिरत उजारी मूरख को है राजा कीन्हों, पंडित फिरत भिखारी ‘सूर’ श्याम मिलने की आशा, छिन छिन बीतत भारी
Khelat Hari Nikase Braj Khori
राधा कृष्ण भेंट खेलत हरि निकसे ब्रज खोरी गए स्याम रवि – तनया के तट, अंग लसति चंदन की खोरी औचक ही देखि तहँ राधा, नैन बिसाल , भाल दिए रोरी ‘सूर’ स्याम देखत ही रीझे, नैन नैन मिलि परी ठगोरी
Jasoda Hari Palne Jhulawe
पालना जसोदा हरि पालना झुलावै मेरे लाल की आउ निंदरिया, काहे न आन सुवावै तूँ काहैं नहि बेगिहि आवै, तोको कान्ह बुलावै कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै सौवत जानि मौन ह्वैके रहि, करि करि सैन बतावै जो सुख ‘सूर’ देव मुनि दुरलभ, सो नँद भामिनि पावें
Tum Taji Aur Kon Pe Jau
परम आश्रय तुम तजि और कौन पै जाऊँ काके द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाऊँ ऐसे को दाता है समरथ, जाके दिये अघाऊँ अंतकाल तुम्हरै सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं पाऊँ भव-समुद्र अति देखि भयानक, मन में अधिक डराऊँ कीजै कृपा सुमिरि अपनो प्रन, ‘सूरदास’ बलि जाऊँ
Nirkhi Syam Haldhar Musukane
यमलार्जुन उद्धार निरखि स्याम हलधर मुसुकाने को बाँधै, को छोरै इन कौं, यह महिमा येई पै जाने उत्पति, प्रलय करत हैं जेई, सेष सहस मुख सुजस बखाने जमलार्जुन –तरु तोरि उधारन, पारन करन आपु मन माने असुर सँहारन, भक्तनि तारन, पावन पतित कहावत बाने ‘सूरदास’ प्रभु भाव-भक्ति के, अति हित जसुमति हाथ बिकाने
Baso Mere Nenan Me Yah Jori
राधा कृष्ण माधुर्य बसौ मेरे नैनन में यह जोरी सुन्दर श्याम कमल – दल – लोचन, सँग वृषभानु किशोरी मोर-मुकुट मकराकृति कुण्डल, पीताम्बर झकझोरी ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस को, कहा बरनौं मति थोरी
Mero Man Anat Kahan Sukh Pawe
अद्वितीय प्रेम मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै कमल नैन को छाड़ि महातम और दैव को ध्यावै परम गंग को छाड़ि पियासों, दुर्मति कूप खनावै जिहिं मधुकर अंबुज रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै ‘सूरदास’ प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै
Mohi Taj Kahan Jat Ho Pyare
हृदयेश्वर श्याम मोहि तज कहाँ जात हो प्यारे हृदय-कुंज में आय के बैठो, जल तरंगवत होत न न्यारे तुम हो प्राण जीवन धन मेरे, तन-मन-धन सब तुम पर वारे छिपे कहाँ हो जा मनमोहन, श्रवण, नयन, मन संग तुम्हारे ‘सूर’ स्याम अब मिलेही बनेगी, तुम सरबस हो कान्ह हमारे
Re Man Murakh Janam Gawayo
असार संसार रे मन मूरख जनम गँवायो करि अभिमान विषय रस राच्यो, श्याम सरन नहिं आयो यह संसार सुवा सेमर ज्यों, सुन्दर देखि भुलायो चाखन लाग्यो रूई गई उड़ि, हाथ कछु नहीं आयो कहा भयो अबके मन सोचे, पहिले पाप कमायो कहत ‘सूर’ भगवंत भजन बिनु, सिर धुनि धुनि पछितायो