Sut Mukh Dekhi Jasoda Phuli
यशोदा का स्नेह सुत-मुख देखि जसोदा फूली हरषित देखि दूध की दंतुली, प्रेम-मगन तन की सुधि भूली बाहिर तें तब नन्द बुलाए, देखौं धौ सुन्दर सुखदाई तनक-तनक-सी दूध दँतुलियाँ, देखौ, नैन सफल कारौं आई आनँद सहित महर तब आये, मुख चितवत दोउ नैन अघाई ‘सूर’ स्याम किलकत द्विज देखे, लगै कमल पे बिज्जु छाई
Hari Aawat Gaini Ke Pache
गो – चारण हरि आवत गाइनि के पाछे मोर-मुकुट मकराकृति कुंडल, नैन बिसाल कमल तैं आछे मुरली अधर धरन सीखत हैं, वनमाला पीताम्बर काछे ग्वाल-बाल सब बरन-बरन के, कोटि मदन की छबि किए पाछे पहुँचे आइ स्याम ब्रजपुर में, धरहिं चले मोहन-बल आछे ‘सूरदास’ प्रभु दोउ जननि मिलिं, लेति बलाइ बोलि मुख बाँछे
Karan Gati Tare Naahi Tare
कर्म-विपाक करम गति टारे नाहिं टरे सतवादी हरिचंद से राजा, नीच के नीर भरे पाँच पांडु अरु कुंती-द्रोपदी हाड़ हिमालै गरे जग्य कियो बलि लेण इंद्रासन, सो पाताल परे ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, विष से अमृत करे
Josida Ne Laakh Badhai
श्याम घर आये जोसीड़ा ने लाख बधाई, अब घर आये स्याम आज अधिक आनंद भयो है, जीव लहे सुखधाम पाँच सखी मिलि पीव परसि कै, आनँद आठूँ ठाम बिसरि गयो दुख निरखि पिया कूँ, सफल मनोरथ काम ‘मीराँ’ के सुखसागर स्वामी, भवन गवन कियो राम
Pag Ghungaru Bandh Meera Nachi Re
समर्पण पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे मैं तो मेरे नारायण की, आपहिं हो गई दासी रे लोग कहे मीराँ भई बावरी, न्यात कहे कुलनासी रे विष को प्याला राणाजी भेज्यो, पीवत मीराँ हाँसी रे ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरि चरणाँ की दासी रे
Braj Me Aaj Sakhi Dekhyo Ri Tona
श्याम का जादू ब्रज में आज सखी देख्यो री टोना ले मटकी सिर चली गुजरिया, आगे मिले बाबा नंद का छोना दधि को नाम बिसरि गयो प्यारी, ले लेहुरी कोउ स्याम सलोना वृन्दावन की कुंज गलिन में, आँख लगाय गयो मन-मोहना ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुन्दर श्याम सुधर रस लोना
Main To Tore Charan Lagi Gopal
शरणागत मैं तो तोरे चरण लगी गोपाल जब लागी तब कोउ न जाने, अब जानी संसार किरपा कीजौ, दरसण दीजो, सुध लीजौ तत्काल ‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कमल बलिहार
Shyam Mohi Mat Tarsavo Ji
विरह व्यथा श्याम मोहि मत तरसावोजी तुम्हरे कारन सब सुख छोड्या, अब क्यूँ देर लगावोजी विरह विथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावोजी अब मत छोड़ो मोहि प्रभुजी, हँस कर तुरत बुलावोजी ‘मीराँ’ दासी जनम-जनम की, अंग से अंग मिलावोजी
Kuch Lena Na Dena Magan Rahna
आत्मानंद कछु लेना न देना मगन रहना पाँच तत्त्व का बना पींजरा, जामे बोलत मेरी मैना गहरी नदिया नाव पुरानी, केवटिया से मिले रहना तेरा पीया तेरे घट में बसत है, सखी खोल कर देखो नैना कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, गुरु-चरण में लिपट रहना
Man Fula Fula Fire Jagat Main Kaisa Nata Re
असार संसार मन फूला-फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे मात कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहै वीर मेरा रे भाई कहै यह भुजा हमारी, नारी कहै नर मेरा रे पेट पकड़ के माता रोवे, बाँह पकड़ के भाई रे लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई रे चार गजी चादर मँगवाई, चढ़ा काठ […]