Rajan Ram Lakhan Ko Dije

विश्वामित्र की याचना राजन! राम-लखन को दीजै जस रावरो, लाभ बालक को, मुनि सनाथ सब कीजै डरपत हौं, साँचे सनेह बस, सुत प्रभाव बिनु जाने पूछो नाम देव अरु कुलगुरु, तुम भी परम सयाने रिपु दल दलि, मख राखि कुसल अति, अल्प दिननि घर ऐंहैं ‘तुलसिदास’ रघुवंस तिलक की, कविकुल कीरति गेहैं

Aaj Hari Adbhut Ras Rachayo

रास लीला आज हरि अद्भुत रास रचायो एक ही सुर सब मोहित कीन्हे, मुरली नाद सुनायो अचल चले, चल थकित भये सबम मुनि-जन ध्यान भुलायो चंचल पवन थक्यो नहि डोलत, जमुना उलटि बहायो थकित भयो चंद्रमा सहित मृग, सुधा-समुद्र बढ़ायो ‘सूर’ श्याम गोपिन सुखदायक, लायक दरस दिखायो

Kahu Ke Kul Hari Nahi Vicharat

भक्त के प्रति काहू के कुल हरि नाहिं विचारत अविगत की गति कही न परति है, व्याध अजामिल तारत कौन जाति अरु पाँति विदुर की, ताही के हरि आवत भोजन करत माँगि घर उनके, राज मान मद टारत ऐसे जनम करम के ओछे, ओछनि ते व्यौहारत यह स्वभाव ‘सूर’ के हरि कौ, भगत-बछल मन पारत

Jabahi Ban Murli Stravan Padi

मुरली का जादू जबहिं बन मुरली स्रवन पड़ी भौंचक भई गोप-कन्या सब, काम धाम बिसरी कुल मर्जाद वेद की आज्ञा, नेकहुँ नाहिं डरी जो जिहि भाँति चली सो तेसेंहि, निसि में उमंग भरी सुत, पति-नेह, भवन-जन-संका, लज्जा नाहिं करी ‘सूरदास’ प्रभु मन हर लीन्हों, नागर नवल हरी

Jo Ham Bhale Bure To Tere

शरणागति जो हम भले-बुरे तो तेरे तुमहिं हमारी लाज बड़ाई, विनती सुनु प्रभु मेरे सब तजि तव सरनागत आयो, निज कर चरन गहे रे तव प्रताप बल बदत न काहू, निडर भये घर चेरे और देव सब रंक भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरि कृपा ते, पाये सुख जु घनेरे

Nand Dwar Ek Jogi Aayo Singi Nad Bajayo

शिव द्वारा दर्शन नंद द्वार इक जोगी आयो सिंगी नाद बजायो सीस जता ससि बदन सोहायो, अरुन नयन छबि छायो रोवत खीजत कृष्ण साँवरो, रहत नहीं हुलरायो लियो उठाय गोद नँदरानी, द्वारे जाय दिखायो अलख अलख करि लियो गोद में, चरन चूमि उर लायो श्रवण लाग कछु मंत्र सुनायो, हँसि बालक किलकायो चिर-जीवौ सुत महरि […]

Prat Kal Uthi Makhan Roti

बालकृष्ण की बान प्रातकाल उठि माखन रोटी, को बिनु माँगे दैहै अब उहि मेरे कुँवर कान्ह को, छिन-छिन गोदी लैहै कहियौ पथिक जाइ, घर आवहु, राम कृष्ण दोउ भैया दोउ बालक कत होत दुखारी, जिनके मो सी मैया ‘सूर’ पथिक सुनि, मोहि रैन-दिन, बढ्यो रहत उर सोच मेरो अलक-लड़ैतो मोहन, करत बहुत संकोच

Muraliya Kahe Guman Bhari

मुरली का जादू मुरलिया काहे गुमान भरी? जड़ तोरी जानों, पेड़ पहिचानों, मधुवन की लकरी कबहुँ मुरलिया प्रभु-कर सोहे, कबहुँ अधर धरी सुर-नर-मुनि सब मोहि गये हैं, देवन ध्यान धरी ‘सूर’ श्याम अस बस भई ग्वालिन, हरि पे ध्यान धरी

Maiya Mohi Dau Bahut Khijayo

खीजना मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ मोंसो कहत मोल को लीन्हौं, तोहिं जसुमति कब जायौ कहा कहौं यहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तेरो तात गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत श्याम शरीर चुटकी दै दै हँसत ग्वाल सब, सिखे देत बलबीर तू मोहीं को […]

Radha Mohan Karat Biyaru

ब्यालू राधा मोहन करत बियारू एक ही थार सँवारे सुंदरि, वेष धर्यो मनहारी मधु मेवा पकवान मिठाई, षडरस अति रुचिकारी ‘सूरदास’ को जूठन दीनी, अति प्रसन्न ललितारी