Raghuvar Tumko Meri Laj
विरूद रघुवर तुमको मेरी लाज सदा सदा मैं सरन तिहारी, तुम बड़े गरीब-निवाज पतित उधारन विरूद तिहारो, श्रवनन सुनी आवाज हौं तो पतित पुरातन कहिये, पार उतारो जहाज अघ खंडन, दुख-भंजन जन के, यही तिहारो काज, ‘तुलसिदास’ पर किरपा करिये, भक्ति दान देहु आज
Aaj Barsane Bajat Badhai
श्री राधा प्राकट्य आज बरसाने बजत बधाई प्रगट भई वृषभानु गोप के सबही को सुखदाई आनँद मगन कहत युवती जन, महरि बधावन आई बंदीजन, मागध, याचक, गुन, गावत गीत सुहाई जय जयकार भयो त्रिभुवन में, प्रेम बेलि प्रगटाई ‘सूरदास’ प्रभु की यह जीवन-जोरी सुभग बनाई
Kahi Main Aise Hi Mari Jeho
वियोग व्यथा कहीं मैं ऐसै ही मरि जैहौं इहि आँगन गोपाल लाल को कबहुँ कि कनियाँ लैहौं कब वह मुख पुनि मैं देखौंगी, कब वैसो सुख पैंहौं कब मोपै माखन माँगेगो, कब रोटी धरि दैंहौं मिलन आस तन प्राण रहत है, दिन डस मारग चैहौं जौ न ‘सूर’ कान्ह आइ हैं तो, जाइ जमुन धँसि […]
Jadyapi Man Samujhawat Log
स्मृति जद्यपि मन समुझावत लोग सूल होत नवनीत देख मेरे, मोहन के मुख जोग प्रातः काल उठि माखन-रोटी, को बिन माँगे दैहै को है मेरे कुँवर कान्ह कौं, छिन-छिन अंकन लैहै कहियौ पथिक जाइ घर आवहु, राम कृष्ण दौउ भैया ‘सूर’ श्याम किन होइ दुखारी, जिनके मो सी मैया
Jo Sukh Braj Me Ek Ghari
ब्रज का सुख जो सुख ब्रज में एक घरी सो सुख तीनि लोक में नाहीं, धनि यह घोष पुरी अष्ट सिद्धि नव निधि कर जोरे, द्वारैं रहति खरी सिव-सनकादि-सुकादि-अगोचर, ते अवतरे हरी धन्य धन्य बड़ भागिनि जसुमति, निगमनि सही परी ऐसे ‘सूरदास’ के प्रभु को, लीन्हौ अंक भरी
Dou Sut Gokul Nayak Mere
वियोग दोउ सुत गोकुल नायक मेरे काहे नंद छाँड़ि तुम आये, प्रान जीवन सबके रे तिनके जात बहुत दुख पायो, शोक भयो ब्रज में रे गोसुत गाय फिरत चहूँ दिसि में, करे चरित नहिं थोरे प्रीति न करी राम दसरथ की, प्रान तजे बिन हेरे ‘सूर’ नन्द सों कहति जसोदा, प्रबल पाप सब मेरे
Prabhuji Main Picho Kiyo Tumharo
चरणाश्रय प्रभुजी मैं पीछौ कियौ तुम्हारौ तुम तो दीनदयाल कहावत, सकल आपदा टारौ महा कुबुद्धि, कुटिल, अपराधी, औगुन भर लिये भारौ ‘सूर’ क्रूर की यही बीनती, ले चरननि में डारौ
Mai Moko Chand Lagyo Dukh Den
विरह व्यथा माई, मोकौं चाँद लग्यौ दुख दैन कहँ वे स्याम, कहाँ वे बतियाँ, कहँ वह सुख की रैन तारे गिनत गिनत मैं हारी, टपक न लागे नैन ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हारे दरस बिनु, विरहिनि कौं नहिं चैन
Maiya Mori Kamar Koun Lai
बाल क्रीड़ा मैया ! मोरी कामर कौन लई गाय चरावन जात वृन्दावन, खरिक में भाज गई एक कहे तोरि कारी कमरिया, जमुना में जात बही एक कहे तोरी कामर देखी, सुरभी खाय गई एक कहे नाचौ हम आगे, कामर देहु नई ‘सूरदास’ प्रभु जसुमति आगे, अँसुवन धार बही
Radha Te Hari Ke Rang Ranchi
अभिन्नता राधा! मैं हरि के रंग राँची तो तैं चतुर और नहिं कोऊ, बात कहौं मैं साँची तैं उन कौ मन नाहिं चुरायौ, ऐसी है तू काँची हरि तेरौ मन अबै चुरायौ, प्रथम तुही है नाची तुम औ’ स्याम एक हो दोऊ, बात याही तो साँची ‘सूर’ श्याम तेरे बस राधा! कहति लीक मैं खाँची