Shri Krishna Chandra Mathura Ko Gaye

विरह व्यथा श्री कृष्णचन्द्र मथुरा को गये, गोकुल को आयबो छोड़ दियो तब से ब्रज की बालाओं ने, पनघट को जायबो छोड़ दियो सब लता पता भी सूख गये, कालिंदी किनारो छोड़ दियो वहाँ मेवा भोग लगावत हैं, माखन को खायबो छोड़ दियो ये बीन पखावज धरी रहैं, मुरली को बजायबो छोड़ दियो वहाँ कुब्जा […]

Shyam Liyo Giriraj Uthai

गिरिराज धरण स्याम लियो गिरिराज उठाई धीर धरो हरि कहत सबनि सौं, गिरि गोवर्धन करत सहाई नंद गोप ग्वालिनि के आगे, देव कह्यो यह प्रगट सुनाई काहै कौ व्याकुल भै डोलत, रच्छा करत देवता आई सत्य वचन गिरिदेव कहत हैं, कान्ह लेहिं मोहिं कर उचकाई ‘सूरदास’ नारी नर ब्रज के, कहत धन्य तुम कुँवर कन्हाई

Aao Manmohan Ji Jou Thari Baat

प्रतीक्षा आओ मनमोहनाजी, जोऊँ थारी बाट खान-पान मोहि नेक न भावै, नयनन लगे कपाट तुम देख्या बिन कल न पड़त है हिय में बहुत उचाट मीराँ कहे मैं भई रावरी, छाँड़ो नहीं निराट

Jogiya Chaai Rahyo Pardes

विरह व्यथा जोगिया, छाइ रह्यो परदेस जब का बिछड़्या फेर न मिलिया, बहुरि न दियो सँदेस या तन ऊपर भसम रमाऊँ, खार करूँ सिर केस भगवाँ भेष धरूँ तुम कारण, ढूँढत फिर फिर देस ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, जीवन व्यर्थ विशेष

Naina Nipat Shyam Chabi Atke

श्याम की मोहिनी नैना निपट श्याम छबि अटके देखत रूप मदनमोहन को, पियत पीयूष न भटके टेढ़ी कटि टेढ़ी कर मुरली, टेढ़ी पाग लर लटके ‘मीराँ’ प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के

Bala Main Beragan Hungi

वैराग्य बाला, मैं वैरागण हूँगी जिन भेषाँ म्हारो साहिब रीझे, सो ही भेष धरूँगी सील संतोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूँगी जाको नाम निरंजन कहिए, ताको ध्यान धरूँगी गुरु के ज्ञान रगूँ तन कपड़ा, मन-मुद्रा पैरूँगी प्रेम-प्रीत सूँ हरि-गुण गाऊँ, चरणन लिपट रहूँगी या तन की मैं करूँ कींगरी, रसना नाम रटूँगी ‘मीराँ’ के […]

Main To Giridhar Aage Nachungi

समर्पण मैं तो गिरिधर आगे नाचूँगी नाच नाच मैं पिय को रिझाऊँ, प्रेमी जन को जाचूँगी प्रेम प्रीति के बाँध घुँघरूँ, सुरति की कछनी काछूँगी लोक लाज कुल की मर्यादा, या मैं एक न राखूँगी पिया के चरणा जाय पडूँगी, ‘मीराँ’ हरि रँग राचूँगी

Shyam Milan Ro Ghano Umavo

मिलन की प्यास श्याम मिलणरो घणो उमावो, नित उठ जोऊँ बाट लगी लगन छूटँण की नाहीं, अब कुणसी है आँट बीत रह्या दिन तड़फत यूँ ही, पड़ी विरह की फाँस नैण दुखी दरसण कूँ तरसै, नाभि न बैठे साँस रात दिवस हिय दुःखी मेरो, कब हरि आवे पास ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, पूरवो […]

Ka Mere Man Mah Base Vrindawan Var Dham

अभिलाषा कब मेरे मन महँ बसै, वृन्दावन वर धाम कब रसना निशि दिन रटै, सुखते श्यामा श्याम कब इन नयननिते लखूँ, वृन्दावन की धूरि जो रसिकनि की परम प्रिय, पावन जीवन मूरि कब लोटूँ अति विकल ह्वै, ब्रजरज महँ हरषाय करूँ कीच कब धूरि की, नयननि नीर बहाय कब रसिकनि के पैर परि, रोऊँ ह्वैके […]

Fag Khelan Ko Aaye Shyam

होली फाग खेलन को आये श्याम मुग्ध हुई ब्रज-वनिता निरखत, माधव रूप ललाम पीत वसन भूषण अंगो पर , सचमुच सबहिं सुहाये तभी श्याम के संग सखा सब, अबीर-गुलाल उड़ाये सखियों ने घेरा मोहन को, केसर रंग लगाया चौवा चंदन और अरगजा, भर भर मूठ चलाया रीझ रहीं सखियाँ मोहन पर, मन भर आनंद आया […]