Mhara Sohan Sundar Shyam Pyara Bega Aajyo Ji

मथुरा गमन (राजस्थानी) म्हारा सोहन सुन्दर श्याम प्यारा, बेगा आज्यो जी मथुरा नगरी जा कर म्हाने, भूल न ज्याजो जी गोपीजन सब भोली भाली, कपट न जाणे जी चतुर सभी मथुरा की नारी, रींझ न ज्याजो जी बंसी की धुन कान पड्या, घर बार भुला कर जी दौड़ी आई मोहन प्यारा, मिलणें थाँसे जी रोवण […]

Jay Jay Bal Krishna

कृष्ण आरती जय जय बालकृष्ण शुभकारी, मंगलमय प्रभु की छबि न्यारी रत्न दीप कंचन की थारी, आरति करें सकल नर-नारी नन्दकुमार यशोदानन्दन, दुष्ट-दलन, गो-द्विज हितकारी परब्रह्म गोकुल में प्रकटे, लीला हित हरि नर-तनु धारी नव-जलधर सम श्यामल सुन्दर, घुटुरन चाल अमित मनहारी पीत झगा उर मौक्तिक-माला, केशर तिलक दरश प्रियकारी दंतुलिया दाड़िम सी दमके, मृदुल […]

Aaj Hari Adbhut Ras Rachayo

रास लीला आज हरि अद्भुत रास रचायो एक ही सुर सब मोहित कीन्हे, मुरली नाद सुनायो अचल चले, चल थकित भये सबम मुनि-जन ध्यान भुलायो चंचल पवन थक्यो नहि डोलत, जमुना उलटि बहायो थकित भयो चंद्रमा सहित मृग, सुधा-समुद्र बढ़ायो ‘सूर’ श्याम गोपिन सुखदायक, लायक दरस दिखायो

Kahu Ke Kul Hari Nahi Vicharat

भक्त के प्रति काहू के कुल हरि नाहिं विचारत अविगत की गति कही न परति है, व्याध अजामिल तारत कौन जाति अरु पाँति विदुर की, ताही के हरि आवत भोजन करत माँगि घर उनके, राज मान मद टारत ऐसे जनम करम के ओछे, ओछनि ते व्यौहारत यह स्वभाव ‘सूर’ के हरि कौ, भगत-बछल मन पारत

Jamuna Tat Dekhe Nand Nandan

गोपी का प्रेम जमुना तट देखे नंद-नन्दन मोर-मुकुट मकराकृति कुण्डल, पीत वसन, तन चन्दन लोचन तृप्त भए दरसन ते, उर की तपन बुझानी प्रेम मगन तब भई ग्वालिनी, सब तन दसा हिरानी कमल-नैन तट पे रहे ठाड़े, सकुचि मिली ब्रज-नारी ‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, व्रत पूरन वपु धारी

Dadhi Bechati Braj Galini Fire

प्रेमानुभूति दधि बेचति ब्रज-गलिनि फिरै गोरस लैन बुलावत कोऊ, ताकी सुधि नैकौ न करै उनकी बात सुनति नहिं स्रवनन, कहति कहा ए घरनि जरै दूध, दही ह्याँ लेत न कोऊ, प्रातहि तैं सिर लिऐं ररै बोलि उठति पुनि लेहु गुपालै, घर-घर लोक-लाज निदरै ‘सूर’ स्याम कौ रूप महारस, जाकें बल काहू न डरै

Patit Pawan Virad Tumharo

विनय पतित पावन बिरद तुम्हारो, कौनों नाम धर्यौ मैं तो दीन दुखी अति दुर्बल, द्वारै रटत पर्यौ चारि पदारथ दिये सुदामहि, तंदुल भेंट धर्यौ द्रुपद-सुता की तुम पत राखी, अंबर दान कर्यौ संदीपन को सुत प्रभु दीने, विद्या पाठ कर्यौ ‘सूर’ की बिरियाँ निठुर भये प्रभु, मेरौ कछु न सर्यौ

Murali Adhar Saji Balbir

मोहिनी मुरली मुरली अधर सजी बलबीर नाद सुनि वनिता विमोहीं, बिसरे उर के चीर धेनु मृग तृन तजि रहे, बछरा न पीबत छीर नैन मूँदें खग रहे ज्यौं, करत तप मुनि धीर डुलत नहिं द्रुम पत्र बेली, थकित मंद समीर ‘सूर’ मुरली शब्द सुनि थकि, रहत जमुना नीर

Maiya Ri Tu Inaka Janati

राधा कृष्ण प्रीति मैया री तू इनका जानति बारम्बार बतायी हो जमुना तीर काल्हि मैं भूल्यो, बाँह पकड़ी गहि ल्यायी हो आवत इहाँ तोहि सकुचति है, मैं दे सौंह बुलायी हो ‘सूर’ स्याम ऐसे गुण-आगर, नागरि बहुत रिझायी हो

Likhi Nahi Pathwat Hain Dwe Bol

विरह व्यथा लिखि नहिं पठवत हैं, द्वै बोल द्वै कौड़ी के कागद मसि कौ, लागत है बहु मोल हम इहि पार, स्याम परले तट, बीच विरह कौ जोर ‘सूरदास’ प्रभु हमरे मिलन कौं, हिरदै कियौ कठोर