Ab To Pragat Bhai Jag Jani
प्रेमानुभूति अब तो पगट भई जग जानी वा मोहन सों प्रीति निरंतर, क्यों निबहेगी छानी कहा करौं वह सुंदर मूरति, नयननि माँझि समानी निकसत नाहिं बहुत पचिहारी, रोम-रोम उरझानी अब कैसे निर्वारि जाति है, मिल्यो दूध ज्यौं पानी ‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, उर अंतर की जानी
Kaha Kahati Tu Mohi Ri Mai
मनोवेग कहा कहति तू मोहि री माई नंदनँदन मन हर लियो मेरौ, तब तै मोकों कछु न सुहाई अब लौं नहिं जानति मैं को ही, कब तैं तू मेरे ढ़िंग आई कहाँ गेह, कहँ मात पिता हैं, कहाँ सजन गुरुजन कहाँ भाई कैसी लाज कानि है कैसी, कहा कहती ह्वै ह्वै रिसहाई अब तौ ‘सूर’ […]
Chalat Lal Penjani Ke Chai
बालकृष्ण लीला चलत लाल पैंजनि के चाइ पुनि-पुनि होत नयौ-नयौ आनँद, पुनि पुनि निरखत पाँइ छोटौ बदन छोटि यै झिंगुली, कटि किंकिनी बनाइ राजत जंत्र हार केहरि नख, पहुँची रतन जराइ भाल तिलक अरु स्याम डिठौना, जननी लेत बलाइ तनक लाल नवनीत लिए कर, ‘सूरदास’ बलि जाइ
Jo Lo Man Kamna N Chute
कामना का त्यचक्ष जो लौं मन कामना न छूटै तो कहा जोग जज्ञ व्रत कीन्हैं, बिनु कन तुस को कूटै कहा असनान किये तीरथ के, राग द्वेष मन लूटै करनी और कहै कछु औरे, मन दसहूँ दिसी टूटै काम, क्रोध, मद, लोभ शत्रु हैं, जो इतननि सों छूटै ‘सूरदास’ तब ही तम नासै, ज्ञान – […]
Nand Gharni Sut Bhalo Padhayo
बाल क्रीड़ा नंद-घरनि! सुत भलौ पढ़ायौ ब्रज-बीथिनि पुर-गलिनि, घरै घर, घात-बाट सब सोर मचायौ लरिकनि मारि भजत काहू के, काहू कौ दधि –दूध लुटायौ काहू कैं घर में छिपि जाये, मैं ज्यों-त्यों करि पकरन पायौ अब तौ इन्हें जकरि के बाँधौ, इहिं सब तुम्हरौ गाँव भगायौ ‘सूर’ श्याम-भुज गहि नँदरानी, बहुरि कान्ह ने खेल रचायौ
Braj Ghar Ghar Pragati Yah Bat
माखन चोरी ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात दधि-माखन चोरी करि ले हरि, ग्वाल-सखा सँग खात ब्रज-बनिता यह सुनि मन हर्षित, सदन हमारें आवैं माखन खात अचानक पावैं, भुज हरि उरहिं छुवावै मन ही मन अभिलाष करति सब, ह्रदय धरति यह ध्यान ‘सूरदास’ प्रभु कौं हम दैहों, उत्तम माखन खान
Maiya Gai Charawan Jehon
गौ-चारण मैया ! गाइ चरावन जैहौ तू कहि महर नंदबाबा सौं, बड़ौ भयौ न डरैहौं रैता, पैता, मना, मनसुखा, हलधर संगहि रैहौं बंसीबट पर ग्वालिन कै संग, खेलत अति सुख पैहौं मैया, भोजन दै दधि काँवरि, भूख लगे तैं खैहौं ‘सूरदास’ है साखि जमुन-जल, सौंह देहु जु नहैहौं
Ye Din Rusibe Ke Nahi
दर्शन की प्यास ये दिन रूसिबै के नाहीं कारी घटा पवन झकझोरै, लता तरुन लपटाहीं दादुर, मोर, चकोर, मधुप, पिक, बोलत अमृत बानी ‘सूरदास’ प्रभु तुमरे दरस बिन, बैरिन रितु नियरानी
Sabhi Taj Bhajiye Nand Kumar
श्री कृष्ण स्मरण सभी तज भजिये नंदकुमार और भजें ते काम सरे नहिं, मिटे न भव जंजार यह जिय जानि, इहीं छिन भजि, दिन बीते जात असार ‘सूरदास’ औसर मत चूकै, पाये न बारम्बार
Hamare Nirdhan Ke Dhan Ram
प्रबोधन हमारे निर्धन के धन राम चोर न लेत घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम जल नहिं बूड़त, अगिनि न दाहत, है ऐसो हरि नाम वैकुण्ठनाथ सकल सुख दाता, ‘सूरदास’ सुख-धाम